राम मंदिर के रथ के सारथी थे अवेद्यनाथ, जानें उनकी विराट कथा!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

आश्विन कृष्ण चतुर्थी (11 सितंबर) को गोरखनाथ मंदिर में महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा। इस सभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, संत समाज के अनेक प्रमुख चेहरे और हजारों श्रद्धालु उनके अमिट योगदान को याद करेंगे।

राम मंदिर आंदोलन के युगपुरुष

महंत अवेद्यनाथ सिर्फ एक पीठाधीश्वर नहीं, बल्कि राम मंदिर आंदोलन के मुख्य शिल्पकार भी थे। उन्होंने आंदोलन को गांव-गांव तक पहुंचाया, संतों, नेताओं और आम जनता को एकत्र कर निर्णायक रणनीति बनाई।

“श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण महंत अवेद्यनाथ के नेतृत्व के बिना असंभव था।”

सामाजिक समरसता के पुजारी

उन्होंने जीवनभर जाति, वर्ग और भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया। दलित बस्तियों में सहभोज, डोमराजा के घर भोजन और राम मंदिर भूमि पूजन में दलित समाज की सहभागिता उनकी दूरदृष्टि का प्रतीक थी।

“शबरी के जूठे बेर और जटायु का अंतिम संस्कार – यही है राम की समरसता।” — महंत अवेद्यनाथ

धर्म, योग और राजनीति – तीनों में समान गति

नाथपंथ की परंपरा को निभाते हुए उन्होंने धर्म और लोकसेवा को एक सूत्र में बांधा। मानीराम विधानसभा से 5 बार विधायक और गोरखपुर लोकसभा से 4 बार सांसद बने। साथ ही, वह हिन्दू महासभा के महासचिव और उपाध्यक्ष भी रहे।

बचपन से ब्रह्मलीन तक – संत जीवन की अमिट यात्रा

  • जन्म: 18 मई 1919, ग्राम कांडी, गढ़वाल (उत्तराखंड)

  • दीक्षा: 8 फरवरी 1942, गोरखनाथ मंदिर

  • पीठाधीश्वर बने: 29 सितंबर 1969

  • चिर समाधि: 2014, आश्विन कृष्ण चतुर्थी

योग और दर्शन के मर्मज्ञ

महंत अवेद्यनाथ ने अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ के आदर्शों को आगे बढ़ाया। योग, तप और सेवा को ही उन्होंने जीवन का उद्देश्य बनाया। उन्होंने नाथपंथ को पूरे भारत में सामाजिक सुधार के आंदोलन से जोड़ा।

श्रद्धांजलि सभा: भव्य समापन का आयोजन

गोरखनाथ मंदिर में 11 सितंबर को श्रद्धांजलि सप्ताह का समापन होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो उनके शिष्य हैं, सभा में शामिल होकर गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करेंगे। सभा में भजन, प्रवचन और विचार गोष्ठी के माध्यम से उनके जीवन के पहलुओं को साझा किया जाएगा।

युगों तक रहेंगे स्मरणीय

राम मंदिर हो या सामाजिक समरसता, धर्म हो या राजनीति – महंत अवेद्यनाथ का जीवन हर क्षेत्र में प्रेरणा का प्रतीक है। उनका स्मरण केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि एक मिशन को आगे ले जाने की प्रेरणा है।

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